Thursday 1 February 2018

सुसमाचार का प्रचार और प्रसार अध्याय -२

आप सब को यीशु सहाय
         प्रभु में प्यारो आईए हम आज जानते हैं ,की कैसे हमरे कलीसिया का प्रसार हुआ
 जब यीशु ने पतरस और अन्ध्रियास को शिष्य होने के लिए बुलाहट दी तो उसने कहा, "मेरे पीछे चलो आओ , मैं तुमको मनुष्यों के मछुवा बनाऊंगा (मरकुस १:१७-१८ )"  एक बार जब आशा से अत्यदिक मछालियां पकड़ी गयी ,तो शमौन और उसके साथियों को और जब्दी के पुत्र याकूब और युहन्ना को आश्चर्य हुआ, तब यीशु ने शमौन से कहा , मत डर ," अब से तू मनुयों को जीविता पकड़ा करेगा (लुक ५:१०)"  और अब यीशु अपने चुने हुए शिष्यों को अपने "मिसन"कार्य के प्रशिक्षण के लिए अपने संग ले चलता है
           बारहों चुने हुए शिष्य और अन्य चेले संग-संग साढ़े तिन वर्ष लों  , अर्थात  यीशु की मृत्यु तथा स्वर्ग पर उठा लिए जाने तक रहे , जंहा कहीं भी यीशु परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार करता था , वे उसके संग होकर उसके उपदेशों से शिक्षित किये गए , रोज़ व रोज़ के जीवन में उन्होंने यीशु के आदेशों से सिखा ,
 व्यावहारिक  प्रशिक्षण निम्मित उसने पहले बारह शिष्यों को तथा बाद में ७० शिष्यों को दो-दो झुण्ड में सुसमाचार प्रचार और चंगाई के कार्यों के लिए भेजा,यह प्रशिक्षण इसलिए दिया गया क्योंकि यीशु जनता था कि वह मृत्यु में पड़ेगा ,जी उठेगा , स्वर्ग पर उठा लिया जायेगा और तत्पश्चात् यह आवश्यक था कि उसके राज्य के  सुसमाचार का प्रचार सारे जगत में किया जाये , लुक लिखता है , "परन्तु जब पवित्रात्मा तुम पर आएगा तब तुम समर्थ पाओगे ; और येरुशलम और सरे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होंगे ,(प्रेरितों के काम १:८ )"


       प्रथम पेंतिकोस्त के दिन ग्यारह चुने हुए शिष्य जिन्हें प्रभु यीशु ने प्रेरित ठहराया और अन्य शिष्यों को उपरौटी कोठरी (अटारी ) में पवित्रत्मा की समर्थ मिली और वे अपने जीवन पर्यंन्त , प्राण देने तक विश्वस्त होकर इस सुसमाचार प्रचार के मिशन को उन्होंने प्रथम शताब्दी में पूरा किया और परमेश्वर का राज्य इस जगत में बढता गया, बाद की  शताब्दीयों में विश्वासी अगुवों के द्वारा "राज्य " का यह काम आगे बढ़ाया गया , सोलहवीं शताब्दी में प्रोटोस्टेंट कलीसियों के अविर्भाव के कारण सुसमाचार प्रचार एवं प्रसार में तीब्र गति आई , कलीसियाओं (बुलाये हुए लोगों की सभाओं ) ने अपने चुने हुए लोगों को मिशनरी बनाकर भिन्न-भिन्न देशों में वचन प्रचार के लिए भेजा , इन भेजे गए  मिशनरीयों (प्रेरित या अपोस्टल ) ने भिन्न-भिन्न देशों में प्रभु यीशु मसीह के उद्धार के सन्देश परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार को सुनाया और अब पृथ्वी पर परमेश्वर का राज्य बलवंत होता और बढ़ता गया , यहाँ तक , आमीन
      प्यारे साथियों हम अगले अध्याय में और भी बहुत कुछ बातें करेंगे ,तब तक यीशु सहाय 

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